आर्यभट्ट [AARYABHATA]

आर्यभट्ट [AARYABHATA] को प्राचीन काल में महान ज्योतिष विद्या और गणितीय खगोल विज्ञान का अगुआ माना जाता है I उनके कार्य पौराणिक से लेकर आधुनिक तक की विद्वानों के लिए उपलब्ध रहे हैं I इनके पुस्तकों में आर्यभट्ट [AARYABHATA] और आर्य सिद्धांत शामिल है I आर्यभट्ट [AARYABHATA] के सभी सिद्धांतों में के अलावा “पाई ” के निकटतम अनुमानों के मान की गणना की I चंद्रमा और ग्रह परावर्तित सूर्य के प्रकाश के कारण चमकते हैं यह समझाने वाले पहले व्यक्ति थे I उन्होंने त्रिकोणमिति और बीज गणित के क्षेत्र में प्रमुख योगदान दिया ।

आर्यभट्ट [AARYABHATA] का प्रारंभिक जीवन

आर्यभट्ट [AARYABHATA] जन्म 476 ईस्वी में हुआ/ जन्म काल शक संवत 398 लिखा है I बिहार राज्य के कुसुमपुरा यानी आधुनिक पटना शहर में हुआ था। गणित विज्ञान और खगोल विज्ञान में उनके विशाल योगदान के बावजूद उन्हें इतिहास में कोई श्रेय नहीं मिला ।

शिक्षा और करियर,आर्यभट्ट [AARYABHATA]

आर्यभट्ट [AARYABHATA] ने अच्छी शिक्षा के लिए कुसुमपुर में यानी पाटलिपुत्र में ही अध्ययन किया । आर्यभट्ट [AARYABHATA] ने नालंदा विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की जो उस समय पटना में ही था , वहां एक खगोलीय वेधशाला थी । उन्होंने 23 वर्ष की आयु में आर्यभट्टीय नामक ग्रंथ लिखा । उनके इस ग्रंथ के प्रसिद्धि और स्वीकृति के चलते राजा बुद्ध गुप्त ने उनको नालंदा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया था ।ऐसा भी कहा जाता है कि आर्यभट्ट ने बिहार के तारेगना स्थित सूर्य मंदिर में एक वेधशाला भी स्थापित की थी।

आर्यभट्ट की कृतियाँ

आर्यभट्ट [AARYABHATA] ने गणित और खगोल विज्ञान पर कई ग्रंथ लिखे, जिनमें से कुछ अब लुप्त हो चुके हैं।

आर्यभटीय

आर्यभट्ट [AARYABHATA] द्वारा लिखा गया यह ग्रंथ, गणित और खगोल विज्ञान पर एक विस्तृत ग्रन्थ है।
आर्यभटीय के गणितीय भाग में अंकगणित, बीजगणित, समतल त्रिकोणमिति, गोलीय त्रिकोणमिति, भिन्न, द्विघात समीकरण, घात-श्रेणी के योग और ज्या की तालिका शामिल है ।

खगोलशास्त्र

आर्यभटीय का वह भाग जो खगोल विज्ञान से संबंधित है, खगोलशास्त्र के नाम से जाना जाता है। खगोल नालंदा में प्रसिद्ध खगोलीय वेधशाला थी, जहां आर्यभट्ट [AARYABHATA] ने अध्ययन किया था।
आर्य सिद्धांत: यह खगोलीय गणना से संबंधित है और इसमें कई खगोलीय उपकरणों का विवरण है

दशमलव स्थान

आर्यभट्ट [AARYABHATA] ने दशमलव प्रणाली का आविष्कार किया और शून्य को स्थानधारक के रूप में प्रयोग किया ।
वह पहले 10 दशमलव स्थानों के नाम बताते हैं और दशमलव का उपयोग करके वर्ग और घनमूल प्राप्त करने के लिए एल्गोरिदम देते हैं।
‘पाई’ का मान – आर्यभट्ट [AARYABHATA] ने दशमलव प्रणाली का आविष्कार किया और शून्य को स्थानधारक के रूप में प्रयोग किया ।
वह पहले 10 दशमलव स्थानों के नाम बताते हैं और दशमलव का उपयोग करके वर्ग और घनमूल प्राप्त करने के लिए एल्गोरिदम देते हैं।
‘पाई’ का मान: वह ज्यामितीय मापों में π के लिए 62,832/20,000 (= 3.1416) का उपयोग करते हैं, जो वास्तविक मान 3.14159 के बहुत करीब है।
आर्यभट्ट द्वारा दिया गया ‘पाई’ का मान आधुनिक मान के बहुत करीब है और प्राचीनों में सबसे सटीक है।
इसके अलावा, यह भी माना जाता है कि आर्यभट्ट जानते थे कि ‘पाई’ का मान अपरिमेय है।
त्रिभुज का क्षेत्रफल – आर्यभट्ट ने त्रिभुज और वृत्त के क्षेत्रफल की सही गणना की थी।
उदाहरण- गणितपदम् में उन्होंने उल्लेख किया कि “एक त्रिभुज के लिए, अर्ध-भुजा वाले लंब का परिणाम क्षेत्रफल होता है।”

घूर्णन का सिद्धांत

आर्यभटीय में खोज महत्वपूर्ण है कि – पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है।
आर्यभट्ट [AARYABHATA] ने यह भी बताया कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है और चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर घूमता है।

ग्रहण: आर्यभटीय मेंआर्यभट्ट ने पृथ्वी, चंद्रमा और ग्रहों द्वारा डाली जाने वाली और उन पर पड़ने वाली छाया के विचार का परिचय दिया है , और कहा है कि चंद्र ग्रहण चंद्रमा के पृथ्वी की छाया में प्रवेश करने के कारण होता है।
आर्यभट्ट ने पृथ्वी की छाया की लंबाई और व्यास, ग्रहणों का समय और अवधि, तथा सूर्य या चंद्रमा के ग्रहणग्रस्त भाग के आकार के लिए सूत्र दिए हैं।

पृथ्वी की परिधि

आर्यभट्ट [AARYABHATA] ने यह भी बताया कि पृथ्वी की परिधि 39,968 किमी है ।
आधुनिक वैज्ञानिक गणना के अनुसार यह 40,072 किमी है।

आर्यभट्ट पुरस्कार

भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान सोसायटी द्वारा स्थापित एक वार्षिक पुरस्कार है ।
यह पुरस्कार भारत में अंतरिक्ष विज्ञान और एयरोस्पेस प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय , आजीवन योगदान देने वाले व्यक्तियों को दिया जाता है ।
भारत के पहले उपग्रह आर्यभट्ट और चंद्र क्रेटर आर्यभट्ट का नाम इस महान भारतीय वैज्ञानिक के सम्मान में रखा गया था।
खगोल भौतिकी, खगोल विज्ञान और वायुमंडलीय विज्ञान में अनुसंधान और प्रशिक्षण के लिए एक केंद्र के रूप में आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एआरआईईएस) की स्थापना नैनीताल (उत्तराखंड) के पास की गई थी।
बैसिलस आर्यभट्टई एक जीवाणु प्रजाति है जिसकी खोज 2009 में इसरो वैज्ञानिकों द्वारा की गई थी।आर्यभट और उनके अनुयायियों द्वारा की गयी तिथि गणना पंचांग अथवा हिंदू तिथिपत्र निर्धारण के व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए भारत में निरंतर इस्तेमाल में रही हैं, इन्हे इस्लामी दुनिया को भी प्रेषित किया I

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