इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय जरिया है ,यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता है । भारत सरकार इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना की घोषणा वर्ष 2017 में की थी। इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को लागू कर दिया था । इन्हें कोई भी दाता खरीद सकता है जिसके पास एक ऐसा बैंक खाता है जिसकी केवाईसी की जानकारी उपलब्ध है। इलेक्टोरल बॉन्ड में भुगतान–कर्ता का नाम नहीं होता।
इलेक्टोरल बॉन्ड विवाद
वर्ष 2018 में चुनावी बांड लागू किया गया। वित्त मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि सरकार ने राजनीतिक फंडिंग प्रणाली को साफ करने के लिए अधिसूचित किया था। इन बॉन्डों के पीछे की अवधारणा राजनीति में काले धन के प्रभाव को कम करना एवम व्यक्ति और कंपनी राजनीतिक दलों को योगदान देने के लिए एक कानूनी और पारदर्शी तंत्र प्रदान करना था
जबकि दानकर्ता की पहचान जनता या चुनाव आयोग के सामने उजागर नहीं की जाती , जिससे राजनीतिक योगदान के स्रोत का पता लगाना मुश्किल हो जाता है । इस अपारदर्शिता ने चिंता पैदा कर दी की चुनावी बांड राजनीतिक व्यवस्था में अवैध धन को सफेद करने में किया जा सकता है । वर्ष 2017 में आर .बी.आई के गवर्नर ने चुनावी बांड के दुरुपयोग की संभावना के बारे में बात की थी।
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया कि इस योजना की वजह से भारतीय और विदेशी कंपनियों द्वारा और सीमित राजनीतिक दान और गुमनाम फंडिंग के फ्लैट गेट जिससे बड़े पैमाने पर चुनावी भ्रष्टाचार को वेद बनाया बना दिया जाता है
कब खरीद सकते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड?
इलेक्टोरल बॉन्ड हर तिमाही में शुरुआत के 10 दिन बिक्री के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं। खरीद के लिए जनवरी ,अप्रैल ,जुलाई और अक्टूबर की पहले 10 दिन तय किए गए हैं।