रानीपट्टी (ईस्टेट )मधेपुरा जिला के जमींदार बाबू जय नारायण मंडल और दोनावती देवी के घर 1 फरवरी 1904 को एक पुत्र के रूप में मनसुख बाबू यानी भूपेंद्र नारायण मंडल का जन्म हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा रानीपट्टी मधेपुरा में ही हुई परंतु बेहतर शिक्षा के लिए इन्हें भागलपुर में रखा गया । उच्च शिक्षा बाबू भूपेंद्र नारायण मंडल ने पटना विश्वविद्यालय से की जहां विधि स्नातक उत्तीर्ण की ।
22 वर्ष की उम्र में इनका विवाह राधा देवी के साथ हो गया । भूपेंद्र बाबू अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत 1930 में वकालत से की। अपने युवावस्था में विद्यार्थी जीवन के दौरान भारत के स्वतंत्रता संघर्ष चरमोत्कर्ष पर था । कोमल वह मन वंचित ,शोषित , ऊपेक्षित भारतीय समाज को देखकर व्याकुल हो रहा था । अंग्रेजों की क्रूरता और पुलिसिया अत्याचार और जुर्म को देखकर मन में एक व्याकुलता… एक उबाल.. था।
गांधी जी और लोहिया के आह्वान पर 1942 की भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़ा। आजादी के बाद कांग्रेस प्रगतिशील गुट के नेताओं ने एक सोशलिस्ट ग्रुप का गठन किया, जिसमें लोहिया ,अच्युत पटवर्धन , जयप्रकाश नारायण आदि शामिल थे, यह गुट 1948 में कांग्रेस से अलग हो गया ।
आजादी के बाद पहले चुनाव आम चुनाव में 1952 में मधेपुरा विधानसभा से तत्कालीन कांग्रेसी नेता बीपी मंडल (जो बाद में द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष भी बने ) उनसे चुनाव महज 666 मत से हार गए। दूसरी बार के आम चुनाव 1957 में बिहार के एकमात्र सोशलिस्ट विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे ।
भूपेन्द्र बाबू आज की जनप्रतिनिधियों से बिल्कुल अलग होने के कारण याद किए जाते हैं और याद किए जाते रहेंगे ।
वे दो बार राज्यसभा से चुने गए 1966 में और 1972 में। भूपेंद्र बाबू अपने कर्तव्यों का निर्वहन बहुत अच्छे से किया करते थे ।
इन्होंने सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के रूप में 1959 एवं 1972 में निर्वाह किया था। 71 वर्ष की अवस्था में इस महान स्वतंत्रता सेनानी का देहावसान हो गया यह दिन 29 मई 1975 का था I
1993 में इस महान विभूति के नाम पर बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव ने भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा में स्थापित किया।