महिला आरक्षण विधेयक 2023: क्या 2025 में दिख रहा है कोई बदलाव?

पारित महिला आरक्षण विधेयक 2023 , जिसे “नारी शक्ति वंदन अधिनियम” कहा गया, का उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण प्रदान करना है। यह ऐतिहासिक कदम महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने की दिशा में एक मील का पत्थर माना जा रहा है।

संविधान (106वाँ संशोधन) अधिनियम, 2023, विधेयक लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें आरक्षित करता है। यह लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा।


इस विधेयक के लागू होने के बाद आयोजित जनगणना के प्रकाशन के बाद यह आरक्षण प्रभावी होगा। जनगणना के आधार पर महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने हेतु परिसीमन किया जाएगा। आरक्षण 15 वर्ष की अवधि के लिये प्रदान किया जाएगा।

प्रत्येक परिसीमन प्रक्रिया के बाद महिलाओं के लिये आवंटित सीटों का चक्रण संसदीय कानून द्वारा नियंत्रित किया जाएगा।


वर्तमान में 17वीं लोकसभा (2019-2024) के कुल सदस्यों में से लगभग 15% महिलाएँ हैं, जबकि राज्य विधानसभाओं में कुल सदस्यों में औसतन 9% महिलाएँ हैं।

भारत में राजनीति में महिलाओं हेतु आरक्षण की पृष्ठभूमि क्या है

राजनीति में महिलाओं के लिये आरक्षण का मुद्दा भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के समय सामने आया। वर्ष 1931 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में तीन महिला निकायों, नेताओं- बेगम शाह नवाज़ और सरोजिनी नायडू द्वारा नए संविधान में महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त रूप से जारी आधिकारिक ज्ञापन प्रस्तुत किये गए थे।

महिलाओं के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना में वर्ष 1988 में सिफारिश की गई थी कि महिलाओं को पंचायत से लेकर संसद के स्तर तक आरक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।

इन सिफारिशों ने संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के ऐतिहासिक अधिनियमन का मार्ग प्रशस्त किया, जो सभी राज्य सरकारों को क्रमशः पंचायती राज संस्थानों एवं इसके प्रत्येक स्तर पर अध्यक्ष पदों तथा शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं हेतु एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने का आदेश देती हैं। इन सीटों में एक-तिहाई सीटें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिये आरक्षित हैं।

महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा वर्ष 1996 से ही की जाती रही है। चूँकि तत्कालीन सरकार के पास बहुमत नहीं था, इसलिये विधेयक को मंज़ूरी नहीं मिल सकी।

महिला आरक्षण विधेयक 2023 की प्रमुख शर्तें

महिला आरक्षण विधेयक 2023, जिसे “नारी शक्ति वंदन अधिनियम” नाम दिया गया है, भारत की संसद द्वारा सितंबर 2023 में पारित किया गया। इसका उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करना है। यह आरक्षण अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए पहले से मौजूद आरक्षण के भीतर ही लागू होगा।

विधेयक की प्रमुख शर्तों में सबसे अहम यह है कि इसका कार्यान्वयन तभी संभव होगा जब देश में 2021 के बाद की पहली जनगणना पूरी हो जाए। इसके पश्चात परिसीमन (निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण) की प्रक्रिया की जाएगी, जिससे आरक्षित सीटों की पहचान की जा सकेगी। जब तक ये दो प्रक्रियाएं पूरी नहीं होतीं, तब तक महिला आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता।

इसके अलावा, यह आरक्षण 15 वर्षों के लिए प्रभावी रहेगा, हालांकि संसद चाहे तो इस अवधि को बढ़ा सकती है। आरक्षण घूर्णन के आधार पर होगा, जिससे अलग-अलग चुनावों में विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं को प्रतिनिधित्व मिलेगा।

इन शर्तों के कारण, विधेयक का प्रभाव 2029 के आम चुनावों से पहले लागू होने की संभावना कम है।

2008 के विधेयक और 2023 में विधेयक पेश करने के बीच मुख्य परिवर्तन:

महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन, 1979 राजनीतिक और सार्वजनिक क्षेत्रों में लिंग-आधारित भेदभाव को समाप्त करने का आदेश देता है, जिसमें भारत भी एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।

प्रगति के बावजूद, निर्णय लेने वाली संस्थाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अपेक्षाकृत कम है, पहली लोकसभा में 5% से बढ़कर 17वीं लोकसभा में 15% हो गया है।

संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने के उद्देश्य से संवैधानिक संशोधन 1996, 1998, 1999 व 2008 में प्रस्तावित किये गए थे।

पहले तीन विधेयक (1996, 1998, 1999) तब समाप्त हो गए जब उनकी संबंधित लोकसभाएँ भंग हो गईं।

वर्ष 2008 का विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया और उसे मंज़ूरी दे दी गई, लेकिन 15वीं लोकसभा भंग होने पर यह भी समाप्त हो गया।

हालाँकि वर्तमान मामले में इसके लिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित “ट्रिपल टेस्ट” का पालन करना आवश्यक होगा।

क्या 33% आरक्षण के तहत OBC महिला आरक्षण होना चाहिये?

पक्ष में एवं विपक्ष में तर्क OBC महिलाओं को उनकी जाति, वर्ग और लिंग के आधार पर कई प्रकार के भेदभाव व उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। उन्हें अक्सर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सामाजिक न्याय तक पहुँच से वंचित कर दिया जाता है।OBC महिलाएँ विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं, धर्मों एवं क्षेत्रों के साथ देश की आबादी का एक बड़ा और विविध वर्ग हैं। उनकी अलग-अलग आवश्यकताएँ और आकांक्षाएँ हैं जिनका अन्य श्रेणियों की महिलाओं द्वारा पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं किया जा सकता है।

OBC महिलाओं को ऐतिहासिक रूप से राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर राजनीतिक क्षेत्र में कम प्रतिनिधित्व दिया गया है व हाशिये पर रखा गया है। उन्हें पितृसत्तात्मक मानदंडों, जातिगत पूर्वाग्रहों, हिंसा और धमकी, संसाधनों एवं जागरूकता की कमी व कम आत्मविश्वास जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ा है।अधिनियम पहले से ही SC/ST महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है, जो समाज में सबसे वंचित और कमज़ोर समूह हैं।

OBC महिलाओं के लिये एक और कोटा जोड़ने से सामान्य श्रेणी की महिलाओं हेतु उपलब्ध सीटें कम हो जाएँगी, जिन्हें पुरुष-प्रधान राजनीतिक व्यवस्था में भेदभाव एवं चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है।OBC महिलाओं के लिये पृथक आरक्षण का विचार महिला आंदोलन के बीच और अधिक विभाजन एवं संघर्ष उत्पन्न करेगा। यह सामाजिक परिवर्तन के लिये सामूहिक शक्ति के रूप में महिलाओं की एकजुटता तथा एकता को भी कमज़ोर करेगा।OBC महिलाओं के लिये अलग आरक्षण से उनकी समस्याओं जैसे निर्धनता, अशिक्षा, हिंसा, पितृसत्ता, जातिवाद और भ्रष्टाचार के मूल कारणों का समाधान नहीं होगा।

यह राजनीतिक क्षेत्र में उनकी प्रभावी भागीदारी और प्रतिनिधित्व की गारंटी भी नहीं देगा, क्योंकि उन्हें अभी भी अपने दलों एवं समुदायों के पुरुष नेताओं द्वारा प्रतीकात्मकता, सह-विकल्प, हेरफेर तथा वर्चस्व जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।

महिला आरक्षण में ,2025 में दिख रहा है कोई बदलाव?

महिला आरक्षण विधेयक 2023, जिसे “नारी शक्ति वंदन अधिनियम” कहा गया, भारत की संसद द्वारा 33% आरक्षण के प्रावधान के साथ पारित किया गया था। इसका उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करना है। यह कदम ऐतिहासिक माना गया, लेकिन इसका प्रभाव तुरंत नजर नहीं आ रहा है।

2025 तक इस विधेयक का कोई प्रत्यक्ष प्रभाव देखने को नहीं मिल रहा है, क्योंकि इसकी कार्यान्वयन प्रक्रिया दो प्रमुख शर्तों पर आधारित है—जनगणना और परिसीमन। 2021 की जनगणना अब तक पूरी नहीं हुई है, और जब तक यह नहीं होती, तब तक निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण (परिसीमन) भी संभव नहीं है। केंद्र सरकार और गृह मंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह विधेयक 2029 के आम चुनावों से पहले लागू नहीं हो सकेगा।

हालांकि सामाजिक और राजनीतिक रूप से इस विधेयक ने चर्चा और जागरूकता को बढ़ाया है, लेकिन व्यवहारिक बदलाव अभी प्रतीक्षित हैं। इसलिए 2025 में इस विधेयक के कोई प्रत्यक्ष राजनीतिक नतीजे नहीं दिख रहे, लेकिन यह भविष्य के लिए एक मजबूत नींव है।

महिला आरक्षण विधेयक 2023 की प्रमुख शर्तें

महिला आरक्षण विधेयक 2023, जिसे “नारी शक्ति वंदन अधिनियम” नाम दिया गया है, भारत की संसद द्वारा सितंबर 2023 में पारित किया गया। इसका उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करना है। यह आरक्षण अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए पहले से मौजूद आरक्षण के भीतर ही लागू होगा।

विधेयक की प्रमुख शर्तों में सबसे अहम यह है कि इसका कार्यान्वयन तभी संभव होगा जब देश में 2021 के बाद की पहली जनगणना पूरी हो जाए। इसके पश्चात परिसीमन (निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण) की प्रक्रिया की जाएगी, जिससे आरक्षित सीटों की पहचान की जा सकेगी। जब तक ये दो प्रक्रियाएं पूरी नहीं होतीं, तब तक महिला आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता।

इसके अलावा, यह आरक्षण 15 वर्षों के लिए प्रभावी रहेगा, हालांकि संसद चाहे तो इस अवधि को बढ़ा सकती है। आरक्षण घूर्णन के आधार पर होगा, जिससे अलग-अलग चुनावों में विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं को प्रतिनिधित्व मिलेगा।

इन शर्तों के कारण, विधेयक का प्रभाव 2029 के आम चुनावों से पहले लागू होने की संभावना कम है।

निष्कर्ष :

हिला आरक्षण विधेयक 2023 भारत की राजनीति में महिलाओं की सहभागिता को सुनिश्चित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक और साहसिक कदम है। यह विधेयक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करने का प्रावधान करता है, जिससे देश की लोकतांत्रिक संरचना में लैंगिक संतुलन को मजबूती मिलेगी।

हालांकि, 2025 तक इस विधेयक के कोई प्रत्यक्ष परिणाम दिखाई नहीं दे रहे हैं। इसका मुख्य कारण है कि विधेयक के कार्यान्वयन की दो प्रमुख शर्तें—नई जनगणना और परिसीमन—अभी तक पूरी नहीं हुई हैं। जब तक यह प्रक्रिया पूर्ण नहीं होती, तब तक महिलाओं को आरक्षित सीटों का वास्तविक लाभ नहीं मिल सकता। सरकार और सर्वोच्च न्यायालय दोनों ने स्पष्ट किया है कि यह आरक्षण 2029 से पहले लागू नहीं हो सकता।

इस प्रकार, 2025 में यह विधेयक राजनीतिक बदलाव तो नहीं ला पाया है, लेकिन सामाजिक जागरूकता, राजनीतिक बहस और महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में यह एक प्रेरणादायक पहल बन चुका है। आने वाले वर्षों में इसके प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देंगे। वर्तमान में यह भविष्य के परिवर्तन की आधारशिला है।

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धन्यवाद

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